लेखकः मुहम्मद कैफ़ सादिक़
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी । समय हर पल नए रंग बदलता रहता है। कहीं उम्मीद की किरण दिखाई देती है, तो कहीं मायूसी के बादल छा जाते हैं। ऐसे समय में इंसान सिर्फ एक दर्शक नहीं होता, बल्कि एक किरदार होता है, जो या तो हालात को बदल सकता है या फिर खुद हालात की मार में खो जाता है।
हम जिस समाज में रहते हैं, वहां खुदगरजी, स्वार्थ और बेरुखी ने जगह बना ली है। रिश्तों की इज्जत खत्म हो गई है, और इंसानी संबंध सिर्फ फायदे-नुकसान के हिसाब से देखे जाने लगे हैं। वो लोग कहाँ गए जो दूसरों के दर्द को अपना समझते थे?
आज हम खुद को ऐसे समाज में अकेला पाते हैं, जहां सच्चाई बोलना गलत माना जाता है, और झूठ बोलने की तारीफ होती है। सामाजिक सोच का अभाव, नैतिक गिरावट, और सोचने-समझने की कमी ये दिखाती है कि हम एक ऐसी नींद में हैं जो हमें जोश और चेतना से दूर कर रही है। हमें न अपनी कद्र है, न अपनी आने वाली पीढ़ी की परवाह।
समाजिक बुराइयां, आर्थिक कठिनाइयां और अन्याय सभी जुड़े हुए हैं, इन्हें अलग नहीं किया जा सकता।
हमारे यहाँ शिक्षा, जो कि किसी भी देश की रीढ़ होती है, सिर्फ डिग्री पाने तक सीमित हो गई है। चरित्र निर्माण, असली ज्ञान और सोचने की आदत अब स्कूलों में नहीं सिखाई जाती। हमारे स्कूल बस वही पैदा कर रहे हैं जो सिस्टम चाहता है: बिना सवाल उठाए, आदेश मानने वाले और सोच-विचार से खाली दिमाग।
अज्ञान केवल पढ़ाई-लिखाई की कमी नहीं, बल्कि वह कमजोरी है जो सही और गलत का फर्क नहीं समझने देती। आज हमारा छात्र सिर्फ नंबरों की दौड़ में लगा है, लेकिन असली ज्ञान से दूर हो गया है।
राजनीति, जो सेवा का काम थी, अब व्यापार बन चुकी है। सत्ता की लालसा ने नैतिकता को खत्म कर दिया है। लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही थोप दी गई है, और लोग केवल वोट देने के बाद सोच-समझ छोड़ देते हैं। नेता वही कहलाते हैं जिनकी बात ज्यादा होती है, पर काम बिल्कुल नहीं।
देश के युवा, जो बदलाव की उम्मीद होते हैं, निराशा, बेरोजगारी और अन्याय के अंधेरे में हैं। पार्टियां सिर्फ सत्ता की लड़ाई में लगी हैं, और देश के मुद्दे उनकी प्राथमिकता नहीं हैं।
हमें खुद से सवाल करना होगा: क्या हम हालात के गुलाम बनकर जीते रहेंगे? या उन्हें बदलने की हिम्मत दिखाएंगे?
हमें अपनी सोच जगानी होगी। अपने व्यवहार बदलने होंगे। अपने बच्चों को सिर्फ किताबों का ज्ञान नहीं, बल्कि जिंदगी के हुनर भी सिखाने होंगे। हमें झूठ, धोखा और स्वार्थ के खिलाफ खड़ा होना होगा।
इस वक्त हमें अपने अंदर वह उजाला जलाना होगा जो आने वाली सदियों को रोशन कर दे। अगर हमने अभी भी न जागा तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा। हालात को दोष देना आसान है, लेकिन उनका सामना करना बहादुरी है। देश वो बनते हैं जो बहादुर होते हैं।
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